तिबारियों में पर्यटन की सम्भावना
ढांगू पट्टी यूं तो अपने आप में ही अपना परिचय है। यहां के गांवों की अद्भुत भौगोलिक बनावट और कंकरीले बारीक पत्थरों भरे रास्ते के लिए जाना जाता है यह क्षेत्र। ढांगू के तीन बड़े हिस्से तल्ला ढांगू, मल्ला ढांगू, विचला ढांगू के नाम से इस संपूर्ण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

यहां के आवासीय भवनों में तिबारियों का विशेष स्थान रहा है परंतु अब ठोस इमारती लकड़ी की कमी, पलायन की मार और रेत के दिखावटी महलों के चक्कर में ये तिबारियां अब इतिहास का हिस्सा बनती जा रही हैं। जबकि अपने आकर्षक शिल्प के कारण ये बरबस ही अतिथियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

  मेरे मूल गांव गटकोट(गटक्वट) मल्ला ढांगू में आज भी इस तरह की तीन चार तिबारियां मौजूद हैं जो कि अपने अस्तित्व के लिए लड़ती प्रतीत होती हैं। ऐसा इसलिए कि इनके कर्ता धर्ता या तो पलायन कर चुके हैं या फिर साजे के चक्कर में अपने अपने अलग घर बना चुके हैं और इस का दंश पूर्वजों की इस थाती को सहना पड़ रहा है।

 गटकोट की सबसे बड़ी व पुरानी तिबारी तिखड़ी के नामी गिरामी जखमोला ब्राह्मणों आशा/हरकू जी के वंशजों की है। इस श्रृंखला में अगला नंबर आता है क्षेत्र के प्रसिद्ध देवगीतों के जानकार(कल़ौ) स्वर्गीय महेशानंद जखमोला जी और उनके छोटे भाई प्रसिद्ध समाजसेवी स्वर्गीय भवानी दत्त जखमोला जी की तिबारी का। इसी तरह की दो तिबारियां गांव की ही ठाकुर बस्ती के गुराड़ रावतों स्वर्गीय रैजा सिंह जी व स्वर्गीय गुठ्यार सिंह जी की भी हैं। संयोगवश केवल एक तिबारी स्वर्गीय रघुवीर सिंह(पुत्र स्वर्गीय गुठ्यार सिंह)अभी तक सुरक्षित है क्योंकि इसमें अभी उनका परिवार निवासरत है। बाकी सभी तिबारियां ध्वस्त होने की कगार पर हैं।

 अगर इन्हें इतिहास होने से बचाना है तो उत्तराखंड सरकार की महत्वपूर्ण होम स्टे योजना से जोड़कर इन्हें पर्यटन उद्योग से जोड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए इनके मालिकों को उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विकास विभाग से संपर्क कर अनुदान के लिए आवेदन करना चाहिए और इन्हें उचित मरम्मत के बाद पर्यटकों को किराये पर देकर अपनी आजीविका के साधन के रूप में विकसित करने की कोशिश करनी चाहिए।

   गटकोट गांव यूं भी नैसर्गिक छटा से भरा हुआ है। इस गांव के हरे भरे साल के जंगल, कल-कल छल-छल के मधुर स्वर से गुंजायमान  घट गदेरे का आकर्षक झरना बहुत ही मनभावन है। इस गांव तक पहुंचने के लिए कोटद्वार से कोटद्वार-पौखाल-भवांसी-गोदड़ा-गटकोट मोटर मार्ग, या कोटद्वार-गूमखाल-सिलोगी-गटकोट मोटर मार्ग , व ऋषिकेश से ऋषिकेश-घट्टूगाड-गैंडखाल-गटकोट सड़क मार्ग से निजी वाहन, मैक्स या गढ़वाल मोटर्स आनर्स यूनियन की परिवहन बस 🚍 सेवा उपलब्ध हैं। यह गांव कोटद्वार व ऋषिकेश से मात्र 72 किमी दूर है। राह में कई तरह के शानदार वृक्षों की कतारों के बीच गुजरना एक सुखद व रोमांचक अनुभव प्राप्त कराता है। पैदल यात्रा का शौक रखने वालों के लिए सिलोगी परसूली खाल या चैलूसैण से धार खाल़ व घाटियों से होते हुए एक रोमांचित करने वाला सफर साबित होता है। यहां तक पहुंचने के लिए वन रक्षक चौकी सिलोगी से कड़थी, कांडई, जल्ली, घनशाली होते हुए भी एक सड़क मार्ग निर्माणाधीन है जोकि कड़थी तक तैयार हो गया है और उम्मीद है कि शीघ्र ही अपने अंतिम पड़ाव गटकोट को छूकर मुख्य सड़क गटकोट मांडलू से जुड़कर यात्रा को सरल व सहज बना देगा।

 इस आलेख के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार से निवेदन है कि यहां के स्थानीय गदेरे घटगदेरे के झरने से उद्दुकाटल(स्यारा ढंडी) तक और मंडलेश्वर महादेव मंदिर के नीचे से संगुड़ीचुल़ के बीच दो कृत्रिम झीलों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे जलक्रीड़ा(नौकायन/तैराकी 🏊) को एक मिशन के तहत आजीविका से जोड़ा जा सके और रिवर्स पलायन करने के लिए उचित माहौल बनाया जा सके।

प्रवासी क्षेत्रवासियों से भी विनम्र आग्रह है कि आप हम सब मिलकर इस क्षेत्र के विकास में योगदान सुनिश्चित करने के लिए कृतसंकल्प हों और अपने पुरखों की इस विरासत को संजोकर इसकी पुरानी छटा को वापस लाकर एक मिसाल कायम करें।

हमारी संस्कृति और संस्कारों की यह श्रृंखला जन सामान्य तक पहुंचे इसका प्रयास होटलमैनेजमैंट करने वाले क्षेत्रीय युवाओं के साथ मिलकर प्रवासी क्षेत्रवासियों को करना होगा। मांडलू में तो जंपिंग जोन की भी पूरी गुंजाइश है, ऐसे ही गटकोट के घटगदेरे से बिस्तरी तक और गहड़ की चोटी 🗻 पर साहसिक पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं जिसमें बंजी जंपिंग, पर्वतारोहण और स्कीइंग की पूरी संभावना है। यदि ऐसा हो जाता है तो 80 प्रतिशत तक रिवर्स पलायन होने की पूरी गुंजाइश है बस जरूरत है इस मुहिम को धरातल पर उतारने की।

धार्मिक पर्यटन के लिए भी यहां के मंडलेश्वर महादेव मंदिर, भगवती मंदिर, नर्सिंग मंदिर, भैरौं मंदिर, भूमिया मंदिर, नागराजा मंदिर तथा ग्वैल देवता के थान को सुसज्जित किया जा सकता है।

  तिबरख्वल़, भीड़ और गुराड़गांव(स्वर्गीय रैजा सिंह) की तीनों तिबारियों में होम स्टे के तौर पर लगभग 35-35 आदमियों के ठहरने की उचित व्यवस्था हो सकती है।  रिवर्स पलायन के लिए उत्तराखंड सरकार की यह योजना शीर्ष वरीयता में रखी गई है क्षेत्रीय युवाओं को इसका लाभ अवश्य ही लेना चाहिए और अपने क्षेत्र की उन्नति में अपना हाथ बंटाना चाहिए। इससे जहां एक ओर युवाओं को रोजगार उपलब्ध होगा वहीं दूसरी ओर गांव क्षेत्र का विकास भी होगा और क्षेत्र की एक नई पहचान भी बनेगी।

आलेख :-विवेकानंद जखमोला 🌾 शैलेश 🌾 ।

ग्राम गटकोट (सिलोगी) पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड